बिहार के 72 फीसद खेतों में नाइट्रोजन की कमी, मिट्टी खराब कर रहा यूरिया का बेहिसाब इस्तेमाल

Important News For Farmers पटना के बिहटा के पास कंचनपुर गांव (kanchanpur Village) है। यहां के किसानों ने अपने खेतों की मिट्टी जांच (Soil Test) कराई। रिपोर्ट आई। कार्ड भी थमा दिया गया। फिर किसान जानें कि उन्हें क्या करना है। मिट्टी जांच का जमीनी हस्र इसी गांव के प्रगतिशील किसान सुधांशु कुमार बताते हैं। सिफारिश के आधार पर बाजार में खाद (Fertilizer) उपलब्ध नहीं हुई तो अधिकतर किसानों ने कार्ड को बक्से में रख दिया और अपनी औकात के हिसाब से खेतों में यूरिया (Urea) डालना शुरू कर दिया। कट्ठा में दो किलो-चार किलो...10-15 दिनों में फसलें लहलहाने लगीं तो सपने हरे हो गए। खेतों की सेहत की चिंता गायब हो गई। कंचनपुर गांव नजीर है खेतों की दुर्गति की ओर प्रस्थान करने की। यह व्यवस्था पर सवाल भी खड़ा करता है। ऐसा नहीं कि सरकार ने प्रयास नहीं किया और किसानों ने रुचि नहीं ली। दोनों अपनी जगह सही हैं। बस प्रयास में लोचा है।
बिहार की मिट्टी में नाइट्रोजन की जबर्दस्त कमी
मिट्टी के तीन प्रमुख पोषक तत्व माने जाते हैं- नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश। बिहार के विभिन्न जिलों से एकत्र किए गए मिट्टी के करीब आठ लाख नमूनों की जांच रिपोर्ट बताती है कि यहां के खेतों में नाइट्रोजन की जबर्दस्त कमी है। औसतन सौ नमूने में से 72 में नाइट्रोजन की मात्रा मानक से कम है। जबकि, 12 नमूनों में पोटाश और 11 में फास्फोरस की कमी है। जाहिर है, फास्फोरस और पोटाश की ज्यादा कमी नहीं है। कंचनपुर गांव का सबक है कि बिहार के किसानों को संभलने और मिट्टी की सेहत को ठीक रखने की जरूरत है।
अत्यधिक फसल की लालच में यूरिया का इस्तेमाल
औरंगाबाद जिले के पिसाय गांव के वरुण पांडेय का भी यही कहना है कि अत्यधिक फसल लेने के लालच में यूरिया का इस्तेमाल बेहिसाब किया जा रहा है। यह नहीं देखा जा रहा कि मिट्टी को किस पोषक तत्व की जरूरत है और हम दे क्या रहे हैं। कृषि विज्ञानियों की सलाह है कि उर्वरकों का इस्तेमाल बेधड़क नहीं करना चाहिए। सस्ते के चक्कर में सभी खेतों में आंख बंदकर यूरिया डालना ठीक नहीं।
मिट्टी के साथ उर्वरक को संतुलित करना जरूरी
कृषि विभाग के उपनिदेशक अनिल कुमार झा के मुताबिक रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि करीब 28 फीसद खेतों में नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा है। ऐसे में मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को जाने बिना रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता इस्तेमाल उत्पादन को तो एकबारगी बढ़ा सकता है, लेकिन मिट्टी की उर्वरता को चौपट कर देगा। बाद में धीरे-धीरे उपज भी गिरती जाएगी। पर्यावरण को भी कीमत चुकानी होगी। जिन क्षेत्रों में दो से ज्यादा फसलें ली जाती हैं, वहां मिट्टी के साथ उर्वरक को संतुलित करना जरूरी है। भले ही खाद की कुछ मात्रा बढ़ाने की जरूरत पड़ जाए।
यूरिया की तय मात्रा से ज्यादा इस्तेमाल घातक
पौधों के विकास के लिए नाइट्रोजन जरूरी है। यूरिया इसका प्रमुख स्रोत है, जिसमें 46 फीसद नाइट्रोजन होता है। खेतों में पड़ते ही एक-दो दिनों में फसलें तेजी से गहरे हरे रंग की हो जाती हैं। मगर तय मात्रा से ज्यादा इस्तेमाल का असर उल्टा पड़ सकता है। ऐसा नहीं कि किसान अज्ञानता में यूरिया डाल रहे हैं। दाम के मुताबिक खेतों की जरूरत पूरी की जा रही है। पहले डीएपी सस्ती थी तो उसे दिया जाने लगा। अब यूरिया सस्ती हुई तो उसे भी बेतहाशा डाला जा रहा है।
चार जिलों की मिट्टी को तुरंत इलाज की जरूरत
वैसे तो अधिकांश हिस्सों की मिट्टी में नाइट्रोजन कम है। परंतु कृषि विवि सबौर की रिपोर्ट के अनुसार भागलपुर, मधेपुरा, नालंदा और अररिया जिले के 90 फीसद मिट्टी के नमूनों में इसकी कमी पाई गई है। भागलपुर जिले की मिट्टी में 50 फीसद फास्फोरस की कमी पाई है। यही नहीं, पोटाश की मात्रा भी कम है। सल्फर की 30 फीसद कमी है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की बात करें तो 25 से 30 फीसद तक जिंक और बोरन की कमी पाई गई है। जैविक कार्बन जैसे अहम तत्व भी मध्यम स्तर या इससे भी नीचे हैं। पटना, रोहतास, पूर्णिया, कटिहार और सहरसा जिलों की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है। पोटेशियम और सल्फर का सबसे ज्यादा अभाव है।
अभी सतर्क नहीं हुए तो बंजर हो जाएंगे खेत
फसल की अच्छी सेहत और प्रबंधन के लिए 17 पोषक तत्वों की जरूरत होती है। इसमें किसान अमूमन चार-पांच पोषक तत्व ही डालते हैं। नाइट्रोजन, पोटाश, सल्फर फास्फोरस के अलावा कुछ किसान जिंक और बोरन का प्रयोग करते हैं। शेष तत्व की आपूर्ति जमीन, हवा एवं पानी से होती है। बेहिसाब उर्वरकों के इस्तेमाल और मिट्टी के दोहन से पोषक तत्वों की कमी हो गई है। सतर्क नहीं हुए तो भविष्य में मिट्टी बंजर हो जाएगी। मिट्टी को दुरुस्त रखने के लिए फसल चक्र को अपनाना होगा। दलहनी फसलें नाइट्रोजन की रक्षा करती हैं। ढैंचा, मूंग, उड़द, मसूर आदि के पौधे वायुमंडलीय नाइट्रोजन को भूमि में स्थिर रखते हैं। इन्हें हरी खाद की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे पहले मिट्टी में जैविक कार्बन बढ़ जाता है और वह लाभदायक जीवाणु के रूप में काम करता है। गोबर खाद, कंपोस्ट, एफवाईएफ, फसल अवशेष से भी मिट्टïी की सेहत को सुधारा जा सकता है।